paralympic archery indian girl:- शीतल देवी जम्मू जिले की एक 17 वर्षीय तीरंदाज न केवल अपनी शारीरिक सीमाओं को पार कर चुकी हैं बल्कि एक अद्भुत प्रेरणा भी बन चुकी हैं जन्म से ही ‘फोकोमेलिया’ नामक एक दुर्लभ जन्मजात विकार से पीड़ित शीतल ने अपनी कठिनाइयों को कभी अपनी कमजोरियों के रूप में नहीं देखा।
बल्कि उन्हें अपनी ताकत के रूप में उपयोग किया आज वह दुनिया की पहली बिना बांहों वाली महिला तीरंदाज हैं और एशियाई पैरा खेलों में स्वर्ण पदक (paralympic archery indian Girl) जीत चुकी हैं शीतल अब पेरिस में होने वाले पैरालंपिक्स में स्वर्ण पदक जीतने की तैयारी में जुटी हुई हैं शीतल की यात्रा एक साधारण गांव से शुरू होती है उनकी पारिवारिक पृष्ठभूमि खेती पर आधारित है जहां तीरंदाजी के बारे में सोचना भी असंभव था।
लेकिन उनकी किस्मत तब बदली जब 2022 में उन्हें एक जानकार के कहने पर जम्मू के कटरा में श्री माता वैष्णो देवी श्राइन बोर्ड स्पोर्ट्स कॉम्प्लेक्स का दौरा करने का मौका मिला वहां उनकी मुलाकात उनके दो कोच अभिलाषा चौधरी और कुलदीप वेदवान से हुई शीतल ने 15 साल की उम्र में पहली बार धनुष और तीर देखा था और तब से उनकी जिंदगी पूरी तरह से बदल गई।
Highlights
paralympic archery indian Girl कोच की भूमिका
शीतल के कोच अभिलाषा चौधरी और कुलदीप वेदवान की मेहनत और दूरदर्शिता ने शीतल को एक नई दिशा दी उन्होंने शीतल की शारीरिक ताकत को पहचानते हुए एक विशेष तकनीक तैयार की जिससे वह अपने पैरों और जबड़े का उपयोग करके तीरंदाजी कर सकें इस प्रक्रिया में कुलदीप वेदवान ने स्थानीय कारीगरों की मदद से शीतल के लिए एक कस्टमाइज्ड धनुष तैयार किया ये धनुष पूरी तरह से स्थानीय सामग्रियों से बना था।
और इसे शीतल की जरूरतों के अनुसार ढाला गया था इसके साथ ही उन्हें अपने शरीर के ऊपरी हिस्से के लिए एक विशेष उपकरण तैयार किया गया जिससे वह तीर छोड़ सकें।
गोल्ड मेडलिस्ट शीतल तीरंदाजी का सफर / Journey of Gold Medalist Sheetal Archery
शुरुआत में शीतल को केवल 5 मीटर की दूरी पर लक्ष्य साधने की प्रैक्टिस कराई गई वह एक रबर बैंड का उपयोग करके प्रैक्टिस करती थीं ताकि उनकी मांसपेशियों में सही संतुलन और ताकत आ सके धीरे-धीरे, उनकी क्षमता में इज़ाफा हुआ और चार महीने के भीतर वह 50 मीटर की प्रतियोगिता मानक दूरी पर तीर मारने लगीं यह सफर आसान नहीं था लेकिन शीतल ने अपने कोच की मदद से इस चुनौती का सामना किया और धीरे-धीरे अपनी स्किल्स को निखारा।
2023 मे शीतल ने पैरा-आर्चरी वर्ल्ड चैंपियनशिप में रजत पदक जीता ( paralympic archery indian Girl) जो उन्हें पेरिस पैरालंपिक्स के लिए क्वालिफाई करने में मददगार साबित हुआ अब वह विश्व की सर्वश्रेष्ठ तीरंदाजों में से एक मानी जाती हैं और अपने देश का प्रतिनिधित्व करने के लिए पूरी तरह तैयार हैं वह वर्तमान में कंपाउंड ओपन महिला वर्ग में विश्व की नंबर एक तीरंदाज हैं और इस बार के पैरालंपिक्स में उनका मुकाबला विश्व नंबर तीन जेन कार्ला गोगेल और विश्व चैंपियन ओज़नुर क्योर से होगा।
शीतल को करना पड़ा इन चुनौतियों का सामना / paralympic archery indian Girl
शीतल की यात्रा केवल भौतिक चुनौतियों तक ही सीमित नहीं थी उन्होंने मानसिक और भावनात्मक रूप से भी कई कठिनाइयों का सामना किया उनके पैरों की मांसपेशियों में लगातार दर्द होता था और कभी-कभी वह सोचती थीं कि यह सब असंभव है लेकिन हर बार उन्होंने अपने अंदर की ताकत को जगाया और खुद को फिर से तैयार किया जब भी वह असफलता महसूस करतीं हैं।
वह अमेरिकी तीरंदाज मैट स्टुट्ज़मैन से प्रेरणा लेतीं जो बिना हाथों के तीरंदाजी करते हैं हालांकि स्टुट्ज़मैन की तरह शीतल के पास अत्याधुनिक उपकरण नहीं थे लेकिन उन्होंने कभी हार नहीं मानी।
शीतल के लिए सबसे बड़ी चुनौती थी अपनी मांसपेशियों के संतुलन को सही ढंग से बनाए रखना उनके कोच ने उन्हें इस संतुलन को तकनीकी रूप से सही ढंग से इस्तेमाल करने के लिए विशेष अभ्यास कराए इसके साथ ही उनके लिए एक विशिष्ट प्रकार का उपकरण भी तैयार किया गया जो उनके तीर छोड़ने की प्रक्रिया को आसान बना सके।
शीतल को कैसें मिली सफलता जानें? / Know how Sheetal got success?
तीरंदाजी में अपनी क्षमता को विकसित करने के साथ ही शीतल ने एशियाई पैरा खेलों में स्वर्ण पदक जीतकर इतिहास रच दिया इस प्रतियोगिता में उन्होंने लगातार छह बार 10 अंक के शॉट्स लगाए जो किसी भी तीरंदाज के लिए एक बड़ी उपलब्धि है इस सफलता के बाद उनका आत्मविश्वास और भी बढ़ गया और अब वह पैरालंपिक्स में अपने देश का प्रतिनिधित्व करने के लिए पूरी तरह तैयार हैं।
शीतल का मानना है कि जीवन में कोई भी सीमा नहीं होती यह केवल उस चीज को पाने की इच्छा और मेहनत पर निर्भर करता है उन्होंने कभी भी अपनी शारीरिक सीमाओं को अपने रास्ते की रुकावट नहीं बनने दिया उनके अनुसार अगर मैं यह कर सकती हूं तो कोई भी कर सकता है।
गोल्डन बिटिया शीतल भविष्य की योजनाएं / paralympic archery indian Girl
शीतल ने पिछले दो वर्षों में कड़ी मेहनत की है और इस दौरान वह अपने घर भी नहीं गई हैं उन्होंने ठान लिया है कि वह अब केवल पैरालंपिक्स के बाद ही घर लौटेंगी और वह भी एक पदक के साथ उनकी इस दृढ़ता और समर्पण ने उन्हें देश और दुनिया भर के लोगों के लिए एक प्रेरणा बना दिया है।
शीतल देवी का जीवन एक उदाहरण है कि कैसे कठिन परिस्थितियों में भी एक व्यक्ति अपनी दृढ़ता और मेहनत के बल पर सफलता की ऊंचाइयों को छू सकता है।
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